- हाेटल-रेस्त्रां में अफगान और पश्चिमी संगीत बजना भी हुआ बंद
- कभी बालीवुड के गाने गली-गली में गूंजा करते थे लेकिन अब होटल-रेस्त्रां में अफगान और पश्चिमी संगीत की धुन भी अब थम गई है
डेस्क न्यूज। गोलियों की आवाज और बारूद की गंध के बाद अब अफगानिस्तान में खामोशी है। गलियों और सड़कों पर सन्नाटा पसरा है। कभी बालीवुड के गाने गली-गली में गूंजा करते थे लेकिन अब होटल-रेस्त्रां में अफगान और पश्चिमी संगीत की धुन भी अब थम गई है।
वजह तालिबान संगीत को गैर इस्लामी करार देता है। मजार-ए-शरीफ में मोबाइल फोन में गाने डाउनलोड करने का छोटा बिजनेस चलाने वाले फहीम का कहना है कि अब लोगों के पास मनोरंजन का सहारा बस तराना ही है।
तराना बिना संगीत वाले गीत होते हें। इसमें गायक बोल को ही पेश करता है। तराना बरसों से अफगान संस्कृति का बरसों से हिस्सा रहे हैं। 2001 से पूर्व में तालिबान राज में संगीत के नाम पर तरानों को ही मंजूरी थी। अफगान इंस्टीट्यट ऑफ म्यूजिक में टीचर रहे परवेज निगाह का कहना है कि तराना संगीत का विकल्प नहीं हो सकता है।
काबुल महिला ऑर्केस्ट्रा सदस्य कतर चली गईं
काबुल की महिला ऑर्केस्ट्रा की सभी 101 सदस्य हाल ही में कतर चली गईं। तालिबान राज में उनका अफगानिस्तान में रहना उनकी जान के लिए बड़ा खतरा था। म्यूजिक स्टूडियो, थियेटर और संगीत की दुकानों पर तालिबान लड़ाकों ने कब्जा किया है।