लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भीख मांगने वाले लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और उनकी आय को सुनिश्चित करने के लिए नगर निगम और सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसको लेकर कई तरह की योजनाएं भी सरकार की तरफ से चलाई जा रही हैं। लेकिन राजधानी के प्रमुख चौराहों पर हाथ फैलाकर भीख मांगने वाली महिलाओं और बच्चों की एक अलग दुनिया है। इन भीखारियों की अपनी एक बस्ती होती है जहां इनका एक मुखिया होता है। जिन्हें दादा या कप्तान कहा जाता है। ये बस्तियां अपने मुखिया के इशारे पर ही चलती हैं।
राजधानी में इनकी बस्तियां चिनहट, अलीगंज, निशातगंज और सदर समेत कई स्थानों पर हैं। बताया जाता है, कि इन बस्तियों के मुखिया ही भिखारियों के टोलियां और शिफ्ट बनाते हैं। खास बात यह है कि टोलियों का निर्धारण जगह देखकर किया जाता है। जैसे कि धार्मिक स्थल के बाहर महिलाओं व बच्चों की संख्या बढ़ा दी जाती है जबकि पर्यटन स्थलों पर अंग्रेजी बोलने वालों को भेजा जाता है। हर टोली के लिए एक ई-रिक्शा या टेंपो होता है। जब शाम को टोलियां लौटती हैं तो दादा वसूली करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं।
नशे में धुत रहते हैं भिखारी
बस्तियों के इलाके में देखें तो भिखारियों के मुखिया खुलेआम नशा करते हैं। पुल के नीचे, रेल पटरी के किनारे इन्हें नशे में धुत देखा जा सकता है। ये ज्यादा कमाई के लिए नशे के सौदागरों से भी हाथ मिला लेते हैं।
वसूली करते हैं और रखते हैं हिसाब
बताया जाता है, मुखिया द्वारा भीखारियों से बस्ती में शाम को दिनभर मिली भीख का हिसाब लिया जाता है। वहीं जिस घर के पुरुष बाहर भीख मांगने जाते हैं, उनके परिवार की जिम्मेदारी भी दादा संभालते हैं। किसी की तबीयत खराब हो तो इलाज करवाते हैं।
हर बस्ती एक-दूसरे के संपर्क में
भिखारियों की हर बस्ती एक दूसरे से संपर्क में रहती है। इलाके तय रहते हैं और कभी कोई दूसरे के इलाके में नहीं जाता है। भीख की रकम के हिसाब से पूरा नेटवर्क चलता है। जैसे मंदिर के बाहर मंगलवार, शनिवार व बृहस्पतिवार को ज्यादा भीख मिलती है। पॉलीटेक्निक, चारबाग, खम्मनपीर मजार, इमामबाड़ा जैसी जगहों पर भी अधिक भीख मिलती है। यहां बस्ती का मुखिया अपने खास भिखारियों को लगाकर वसूली करता है।
50 हजार तक है एक बस्ती की रोजाना कमाई
बताया जाता है एक बस्ती के मुखिया की रोजाना कमाई लाखों में होती है। एक भिखारी रोजाना करीब 700 से 1 हजार रुपये तक ले आता है। घर के सदस्यों की संख्या के अनुसार कमाई घटती-बढ़ती रहती है। एक बस्ती औसतन 50 हजार रुपये तक रोज कमा लेती है। कोई बड़ा धार्मिक आयोजन होने पर कमाई बढ़ भी जाती है।